महज चेचिस पर ही झुर्रियों ने ली अंगड़ाई है महज हाड़-मांस में ही कल-पुर्जों की हुई घिसाई है बाखुदा मो…
सोचने का अंदाज़ बदलो दुनिया बदल जायेगी शुलों को गुलों में बदलते चलो मंजिल खुद दोड़ी चली आएगी दुश्मन …
दर्द का बाज़ार है ,ज़ख्मो का व्यापार है बहते खून पसीने का मोल क्या यहाँ ? शराबों में डूबा हुआ गुले ग…
उसकी याद दिलाती हे , उसका चेहरा बताती हे, मंद-मंद बहते हुए यूँ गुनगुनाती हे उसका नाम, ये ढलती…