Electric Vehicles Demand: बढ़ती मांग से वैश्विक तेल बाजार पर पड़ेगा असर, IEA की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

Electric Vehicles Demand: इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (IEA) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) की बढ़ती लोकप्रियता खासकर चीन में, आने वाले वर्षों में तेल बाजार को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर सकती है। यह रुझान न केवल वैश्विक तेल की मांग को कम करेगा, बल्कि ऊर्जा उद्योग पर भी इसका व्यापक असर पड़ सकता है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यदि इलेक्ट्रिक वाहनों का यह रुझान जारी रहा, तो 2030 तक हर दिन 6 मिलियन बैरल तेल की मांग में गिरावट हो सकती है।

चीन में इलेक्ट्रिक वाहन क्रांति: 2030 तक 70% इलेक्ट्रिक कारें

चीन इस बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण है, जहां पहले से ही आधी से ज्यादा इलेक्ट्रिक कारें सड़क पर दौड़ रही हैं। चीन में वर्तमान में नई कार बिक्री का लगभग 40% इलेक्ट्रिक वाहनों का है, और 2030 तक यह आंकड़ा 70% तक पहुंचने का अनुमान है। चीन का यह कदम जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों के साथ तालमेल बिठाते हुए अपने उत्सर्जन में कमी लाने की दिशा में अग्रसर है। चीन ने अपने बड़े पैमाने पर पवन और सौर ऊर्जा के उपयोग से दुनिया के सामने एक नया मॉडल पेश किया है, जो न केवल पर्यावरण को बचाने की दिशा में है, बल्कि ग्लोबल ऑयल मार्केट को भी प्रभावित कर रहा है।

विशेषताएंविवरण
इलेक्ट्रिक कारों की मौजूदा बिक्रीचीन में 40%, वैश्विक स्तर पर 20%
2030 का लक्ष्यचीन में 70% नई कारें होंगी इलेक्ट्रिक
तेल मांग में कमी2030 तक प्रतिदिन 6 मिलियन बैरल की कमी

भारत: तेल उत्पादकों के लिए उम्मीद की किरण?

हालांकि, चीन का बिजली की ओर रुख तेल बाजार में उथल-पुथल मचा सकता है, लेकिन तेल उत्पादकों को उम्मीद है कि भारत उनकी मांग को बढ़ाने में मदद कर सकता है। IEA के मुताबिक, 2035 तक भारत हर दिन 2 मिलियन बैरल अतिरिक्त तेल की मांग जोड़ सकता है। यह उन तेल उत्पादकों के लिए लाइफलाइन बन सकता है जो चीन और अन्य बाजारों में घटती मांग की भरपाई करना चाहते हैं।

पेरिस समझौते का लक्ष्य और वैश्विक जलवायु संकट

रिपोर्ट के अनुसार, भले ही इलेक्ट्रिक वाहनों की बढ़ती मांग और स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग से कुछ सुधार हो रहा है, लेकिन दुनिया अभी भी शुद्ध शून्य उत्सर्जन लक्ष्यों से काफी दूर है। IEA का मानना है कि अगर इस दिशा में तेजी से कार्रवाई नहीं की गई, तो जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों को टाला नहीं जा सकेगा। 2015 के पेरिस समझौते का लक्ष्य तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना था, लेकिन मौजूदा रुझानों के अनुसार, दुनिया 2.4 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि की ओर बढ़ रही है।

तेजी से बदलाव की जरूरत

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कार्बन उत्सर्जन में तेजी से कमी नहीं की गई, तो यह संकट गहराता जाएगा। IEA के रिपोर्ट के अनुसार, उत्सर्जन अपने उच्चतम स्तर तक पहुंचने के बाद भी धीरे-धीरे कम हो रहा है, लेकिन यह गति पर्याप्त नहीं है। नीति निर्माताओं को तेजी से कदम उठाने की जरूरत है ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए जलवायु स्थिरता सुनिश्चित की जा सके।

IEA की यह रिपोर्ट दुनिया के ऊर्जा और पर्यावरण नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण चेतावनी है। अगर दुनिया को भविष्य में ऊर्जा संकट और जलवायु परिवर्तन से बचाना है, तो स्वच्छ ऊर्जा और इलेक्ट्रिक वाहनों को प्राथमिकता देना बेहद जरूरी है।

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