जानें भारत के उन गाँवों और शहरों के बारे में जहाँ दिवाली नहीं मनाई जाती है। यहाँ की अनोखी परंपराओं और मान्यताओं का महत्व।
Diwali Celebration Ban Cities and Villages |
भारत में दिवाली को बहुत ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व न केवल हिन्दू धर्म का बल्कि अन्य धर्मों के लिए भी एक विशेष महत्व रखता है। दिवाली का पर्व अंधकार से प्रकाश की ओर, बुराई पर अच्छाई की जीत और खुशहाली का प्रतीक है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि भारत में कुछ ऐसे गाँव और शहर भी हैं जहाँ दिवाली बिल्कुल भी नहीं मनाई जाती? आइए जानें ऐसे अनोखे स्थानों के बारे में जहाँ इस महापर्व को नहीं मनाने की परंपरा है।
क्यों नहीं मनाई जाती दिवाली?
ऐसे गाँव और शहर जहाँ दिवाली नहीं मनाई जाती, वहाँ इसके पीछे कई सांस्कृतिक, धार्मिक और ऐतिहासिक कारण हैं। कुछ स्थानों पर यह कोई धार्मिक मान्यता है, तो कहीं यह किसी ऐतिहासिक घटना के कारण है। कई बार यहाँ के लोगों ने दिवाली न मनाने का निर्णय सामूहिक रूप से लिया है, और यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है।
भारत के प्रमुख गाँव और शहर जहाँ नहीं मनाई जाती दिवाली
स्थान | राज्य | कारण |
---|---|---|
काशी | उत्तर प्रदेश | भगवान राम के मरण पर शोक |
कोटोर | राजस्थान | देवी लक्ष्मी की नाराजगी का डर |
दुल्ला | पंजाब | जंग का शोक |
वरकला | केरल | विशेष धार्मिक मान्यताएँ |
बरमराजपुर | बिहार | आस्था और शांति के प्रतीक के रूप में |
काशी, उत्तर प्रदेश
काशी (वाराणसी) में कुछ स्थानों पर दिवाली नहीं मनाई जाती है। इसके पीछे एक धार्मिक मान्यता है कि भगवान राम के जन्म के बाद जब काशी आए, तब उन्होंने यह निर्णय लिया कि यहाँ के कुछ विशेष क्षेत्रों में दीपावली न मनाई जाए। यहाँ के कुछ धार्मिक लोग इसे भगवान राम के सम्मान में नहीं मनाते। इसके बजाय, यहाँ कुछ स्थानों पर प्रार्थनाओं का आयोजन किया जाता है।
कोटोर, राजस्थान
राजस्थान के कोटोर गाँव के लोग दिवाली नहीं मनाते हैं। इसके पीछे मान्यता है कि यहाँ देवी लक्ष्मी किसी कारणवश नाराज हुई थीं। गाँववालों का मानना है कि दिवाली मनाने से देवी लक्ष्मी की नाराजगी और बढ़ सकती है, जिसके चलते यहाँ इस पर्व को न मनाने की परंपरा है।
वरकला, केरल
केरल के वरकला क्षेत्र में भी दिवाली न मनाने की परंपरा है। यहाँ के लोग अन्य त्योहारों को बड़े हर्षोल्लास से मनाते हैं, लेकिन दिवाली का त्यौहार उनके लिए उतना महत्वपूर्ण नहीं है। इसके पीछे धार्मिक मान्यताएँ और संस्कृति का प्रभाव है, जिसके चलते यहाँ दिवाली को एक साधारण दिन की तरह ही माना जाता है।
दुल्ला गाँव, पंजाब
पंजाब के दुल्ला गाँव में भी दिवाली नहीं मनाई जाती। यह गाँव भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय जंग का गवाह रहा है। यहाँ के लोगों ने उस समय के संघर्ष और शहीद हुए सैनिकों की याद में दिवाली न मनाने का फैसला लिया था। इस गाँव के लोग शहीदों के सम्मान में दीपावली के दिन किसी भी तरह का जश्न नहीं मनाते।
बरमराजपुर, बिहार
बिहार के बरमराजपुर गाँव के लोग दिवाली नहीं मनाते। यह गाँव शांति और आस्था का प्रतीक माना जाता है, और यहाँ के लोग मानते हैं कि दिवाली की रौनक उनकी इस शांति को भंग कर सकती है। यहाँ लोग अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार शांति और साधना में लीन रहते हैं और दिवाली जैसे त्यौहारों से दूर रहना ही उचित समझते हैं।
दिवाली न मनाने के कारण:
गाँव/शहर | कारण |
---|---|
काशी | भगवान राम के प्रति सम्मान |
कोटोर | देवी लक्ष्मी की नाराजगी का डर |
दुल्ला | शहीदों के सम्मान में |
वरकला | धार्मिक मान्यताएँ |
बरमराजपुर | शांति का प्रतीक |
इन स्थानों पर दिवाली के बजाय फिर क्या किया जाता है?
इन स्थानों पर दिवाली के दिन खास पूजा-पाठ का आयोजन किया जाता है। काशी में विशेष रूप से गंगा किनारे प्रार्थनाएँ की जाती हैं। दुल्ला गाँव के लोग दिवाली के दिन शहीदों की स्मृति में मौन व्रत रखते हैं। कोटोर में लोग लक्ष्मी पूजा के बजाय किसी भी प्रकार की गतिविधियों से बचते हैं ताकि देवी लक्ष्मी प्रसन्न रहें।
त्यौहार न मनाना भी एक परंपरा है
भारत में त्योहारों को मनाने के तरीके और परंपराएँ बहुत विविधतापूर्ण हैं। लेकिन किसी त्योहार को न मनाना भी एक प्रकार की परंपरा है। ये परंपराएँ उन विशेष स्थानों की पहचान का हिस्सा बन चुकी हैं। दिवाली जैसे बड़े पर्व को न मनाने का कारण इन स्थानों की सांस्कृतिक धरोहर में छिपा है।
दिवाली न मनाने वाले अन्य स्थानों का योगदान
इन स्थानों पर दिवाली न मनाने की परंपरा यह दर्शाती है कि भारतीय संस्कृति में विविधता कितनी समृद्ध है। हर गाँव और हर शहर का अपना एक अलग इतिहास है। ये परंपराएँ सिर्फ एक आस्था या मान्यता नहीं हैं, बल्कि इनसे जुड़ी कहानियाँ भी हैं जो हमें भारत की गहरी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ती हैं।
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